सतंरगी बातें
यह शीर्षक आपको पुराने दिनों की याद दिलाती होगी । बचपन में नौटंकी से पहले रिक्शे पर बैठकर दो लोग गली-गली घूम-घूम कर लाउड स्पिकर पर नौटंकी के बारे में बता थे । जिन्हें नौटंकी पसंद थी वह रातभर जग कर नाटक देखते थे । पहले गांवों में अक्सर नौटंकियों के आयोजन होते थे ।
अब चुनाव के कारण रोज नौटंकी देखने को मिल रहा है । भारत के वोटर इसका खूब लुफ्त उठा रहे हैं । अब स्पष्ट तरीके से आपको समझाता हूं । भारत लोकतांत्रिक देश है । लेकिन कईं सालों से हम गुलाम थे इसीलिए अभीतक गुलामी हमारे रग-रग में है । इसीलिए हम चाहते हैं कि लोग हमपर शासन करें । कुछ लोगों ने देशपर शासन करने का ठेका ले रखा है । वे लोग इसे जनता की सेवा कहते हैं । कुछ लोग तो मृत्यु तक जनता की सेवा करना चाहते हैं । उम्र भले ही 80-90 साल हो जाए । हाथ-पैर न चाले । आंखों को दिखाई न दे । दिमाग ठीक से काम न करे लेकिन चुनाव लड़ने को तैयार । पूछने से बोलेंगे उम्र ? उम्र बस एक नम्बर है । देखों मेरा दिल अभी भी जवान है । जनता जनार्दन की सेवा करने के लिए मेरा मन अब भी व्याकुल है । उन्हें अगर कहा जाए कि जनता की सेवा करने के और भी सौ तरीके हैं केवल चुनाव लड़ना एक मात्र उपाय नहीं, वे तुरंत जवाब देंगे इस उपाय से जनता की सेवा करने से सेवा भी होगा और मेवा भी मिलेगा ।
अपने उम्र के चलते यह अपने बेटेबेटियों को टिकट देने की बात करते हैं । यह दावा करते हैं कि जनसेवा इनका पारिवारिक धर्म है । सच में ऐसा लगता है जैसे जनता की सेवा करने का इन्होंने ठेका ले रखा है । बाप के बाद बेटा और बेटे के बाद पोता ।
कुछ नेता जनता की सेवा करने के लिए इतने व्याकुल हैं कि उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं । जिस पार्टी में वो हैं अगर उस पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह पार्टी छोड़ने को भा तैयार हो जाते हैं। जनता की सेवा जबरदस्ती करते हैं यह लोग !
कुछ नेता इससे भी दो कदम आगे हैं । अगर अपने ही परिवार का कोई व्यक्ति किसी पार्टी में है तो यह दुसरी पार्टी से उनके खिलाफ भी चुनाव लड़ने को तैयार हो जाते हैं । ऐसे में वे लोग कुरुक्षेत्र का उदाहरण देते हैं । देखिए, पांडव और कौरव भी एक परिवार के थे । उन्होंने भी एक-दुसरे के खिलाफ जंग लड़ा था । इस मामले में पता ही नहीं चलता कि पांडव कौन है और कौरव कौन ? दोनों ही खुद को कौरव और दुसरे को पांडव कहते हैं ।
यहां पार्टियां भी एक से बढ़ कर एक हैं । वह इस पारिवारिक नाटकको और भी मनोरंजक बना देते हैं । दुसरी पार्टियों से आए नेताओं को टिकट देते हैं और अपनी पार्टी के नेता की अवहेलना करते हैं । इसीलिए नेता भी दुसरी पार्टियों में चले जाते हैं । इस नौटंकी में पार्टी के कर्मी कंफ्यूज हो जाते हैं । वह समझ ही नहीं पाते कि उनकी पार्टी का नेता कौन है ? वह किसका समर्थन करें ?
इस मनोरंजक नाटक के दर्शक यानी हम अक्सर समझ ही नहीं पाते कि यह कॉमेडी है या ट्रेजेडी !
(मृणाल चटर्जी ओडिशा के जानेमाने लेखक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं । मृणाल ने अपने स्तम्भ 'जगते थिबा जेते दिन' ( संसार में रहने तक) से ओड़िया व्यंग्य लेखन क्षेत्र को एक मोड़ दिया । हाल ही में इनके स्तंभों का संकलन 'पथे प्रांतरे' का प्रकाशन हुआ है )
मनोरंजक नाटक
मृणाल चटर्जी
अनुवाद- इतिश्री सिंह राठौर
यह शीर्षक आपको पुराने दिनों की याद दिलाती होगी । बचपन में नौटंकी से पहले रिक्शे पर बैठकर दो लोग गली-गली घूम-घूम कर लाउड स्पिकर पर नौटंकी के बारे में बता थे । जिन्हें नौटंकी पसंद थी वह रातभर जग कर नाटक देखते थे । पहले गांवों में अक्सर नौटंकियों के आयोजन होते थे । अब चुनाव के कारण रोज नौटंकी देखने को मिल रहा है । भारत के वोटर इसका खूब लुफ्त उठा रहे हैं । अब स्पष्ट तरीके से आपको समझाता हूं । भारत लोकतांत्रिक देश है । लेकिन कईं सालों से हम गुलाम थे इसीलिए अभीतक गुलामी हमारे रग-रग में है । इसीलिए हम चाहते हैं कि लोग हमपर शासन करें । कुछ लोगों ने देशपर शासन करने का ठेका ले रखा है । वे लोग इसे जनता की सेवा कहते हैं । कुछ लोग तो मृत्यु तक जनता की सेवा करना चाहते हैं । उम्र भले ही 80-90 साल हो जाए । हाथ-पैर न चाले । आंखों को दिखाई न दे । दिमाग ठीक से काम न करे लेकिन चुनाव लड़ने को तैयार । पूछने से बोलेंगे उम्र ? उम्र बस एक नम्बर है । देखों मेरा दिल अभी भी जवान है । जनता जनार्दन की सेवा करने के लिए मेरा मन अब भी व्याकुल है । उन्हें अगर कहा जाए कि जनता की सेवा करने के और भी सौ तरीके हैं केवल चुनाव लड़ना एक मात्र उपाय नहीं, वे तुरंत जवाब देंगे इस उपाय से जनता की सेवा करने से सेवा भी होगा और मेवा भी मिलेगा ।
अपने उम्र के चलते यह अपने बेटेबेटियों को टिकट देने की बात करते हैं । यह दावा करते हैं कि जनसेवा इनका पारिवारिक धर्म है । सच में ऐसा लगता है जैसे जनता की सेवा करने का इन्होंने ठेका ले रखा है । बाप के बाद बेटा और बेटे के बाद पोता ।
कुछ नेता जनता की सेवा करने के लिए इतने व्याकुल हैं कि उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं । जिस पार्टी में वो हैं अगर उस पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह पार्टी छोड़ने को भा तैयार हो जाते हैं। जनता की सेवा जबरदस्ती करते हैं यह लोग !
कुछ नेता इससे भी दो कदम आगे हैं । अगर अपने ही परिवार का कोई व्यक्ति किसी पार्टी में है तो यह दुसरी पार्टी से उनके खिलाफ भी चुनाव लड़ने को तैयार हो जाते हैं । ऐसे में वे लोग कुरुक्षेत्र का उदाहरण देते हैं । देखिए, पांडव और कौरव भी एक परिवार के थे । उन्होंने भी एक-दुसरे के खिलाफ जंग लड़ा था । इस मामले में पता ही नहीं चलता कि पांडव कौन है और कौरव कौन ? दोनों ही खुद को कौरव और दुसरे को पांडव कहते हैं ।
यहां पार्टियां भी एक से बढ़ कर एक हैं । वह इस पारिवारिक नाटकको और भी मनोरंजक बना देते हैं । दुसरी पार्टियों से आए नेताओं को टिकट देते हैं और अपनी पार्टी के नेता की अवहेलना करते हैं । इसीलिए नेता भी दुसरी पार्टियों में चले जाते हैं । इस नौटंकी में पार्टी के कर्मी कंफ्यूज हो जाते हैं । वह समझ ही नहीं पाते कि उनकी पार्टी का नेता कौन है ? वह किसका समर्थन करें ?
इस मनोरंजक नाटक के दर्शक यानी हम अक्सर समझ ही नहीं पाते कि यह कॉमेडी है या ट्रेजेडी !
(मृणाल चटर्जी ओडिशा के जानेमाने लेखक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं । मृणाल ने अपने स्तम्भ 'जगते थिबा जेते दिन' ( संसार में रहने तक) से ओड़िया व्यंग्य लेखन क्षेत्र को एक मोड़ दिया । हाल ही में इनके स्तंभों का संकलन 'पथे प्रांतरे' का प्रकाशन हुआ है )
23.4.19
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