सतरंगी बातें
अब पूरे देश में यही मौसम है । अब ओडिशा की ही बात ले लीजिए ! विपक्ष के कुछ नेता सत्तापक्ष के हो गए हैं । फिर कुछ नेता उस पार्टी को छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल हो गए हैं। दुसरे दिन जब अखबार से लोगों को इस बात का पता लगा तो आधे कन्फ्यूज हो गए कि कौन किस दल का नेता है ! दोस्तों ! राजनीति में रोज कुछ न कुछ होता रहता है । वहां कोई किसीका परमानेंट दोस्त नहीं । जरूरत ही दुश्मन और दोस्त तय करता है । आज जो इस दल में है कल उस दल में होगा ।
पार्टी से याद आया कि कुछ पार्टिंयां है या नहीं यह जान पाना मुश्किल है । चुनाव से पहले कईं छोटी-मोटी पार्टियों का संगम बड़ी पार्टियों से हो जाता है । इस दल-बदली के बारे में मैंने शोध किया । इसके चार ही कारण हैं । एक- जो दल बदलने वाले नेता कहते हैं । दो- जो नेता के दल छोड़ने बाद वहां बचे नेता कहते हैं । तीन- जिस पार्टी में नेता शामिल होते हैं उसी पार्टी के सदस्य जो कहते हैं और चार-जिस कारण एक नेता दल छोड़कर दुसरी पार्टी में शामिल होता है वही होता है असली कारण । आपने अगर नोटिस किया होगा तो , पार्टी छोड़ने के बाद नेता अक्सर यही कहते हैं कि इस पार्टी का कोई आदर्श नहीं । इसमें लोकतंत्र ही नहीं । पार्टी के नेता स्वार्थी हैं । आम लोगों की बातों को वह नजरअंदाज कर देते हैं । मैं लोगों की सेवा के लिए जो करना चाहता हूं, वह कर नहीं पा रहा । मेरा दम घुट रहा है । इसीलिए मैंने इस पार्टी को छोड़ कर उस पार्टी को ज्वाइन किया है ।
पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर नेता यही कहते हैं कि पूर्व पार्टी खराब थी, नई पार्टी अच्छी है । उन्हें स्वीकार करनेवाले नेता कहते हैं- उस दल के दिग्गज नेता बुरे हैं । जिन्होंने पार्टी ज्वाइन की है वही साधु हैं । जो साधु नेता हमारी पार्टी में शामिल हुए हैं उनके आने के बाद पार्टी और मजबूत होगी ।
फिर नेता जिस पार्टी को छोड़कर जाते हैं उस पार्टी के नेता कहते हैं उनके जाने से हमारा बिलकुल भी नुकसान नहीं होगा । पार्टी पर उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा । वह बहुत ही स्वार्थी थे । पार्टी की हितों के बारे में नहीं सोचते थे । पार्टी का काम नहीं करते थे । केवल आत्म प्रचार में लगे रहते थे । उनके जाने से पार्टी और भी मजबूत हो गई है ।
अब दल-बदलने का असली कारण मैं आपको बताता हूं । असली कारण है, स्वार्थ और अभिमान । कुछ लोग अभिमान के कारण पार्टी छोड़ते हैें । पार्टी में जिस तरह का सम्मान मिलना चाहिेए उस तरह का सम्मान न मिलने पर कुछ लोग पार्टी छोड़ते हैं । लेकिन एेसे लोगों की संख्या कम है । असलिय़त तो यह है कि अगर पुरानी पार्टी में अपना स्वार्थ पूरा न हो अथवा जो पद मिलना चाहिए वह न मिले तो नेता पार्टी छोड़ देते हैं । पकड़ो । छोड़ो । पकड़ो । छोड़ो । यह हमारी राजनीतिक संस्कृति बन चुकी है ।
इसकेलिए केवल राजनेता जिम्मेदार नहीं क्योंकि नेता पेड़ पर नहीं उगते । लोग हीं किसी इंसान को नेता बनाते हैं । कहते का मतलब यह है कि मतदाता हीं इसमें कुछ कर सकते हैं । अगर हम दल-बदलने वाले नेता को वोट न देकर खारिज कर दें, तो नेताओं को सीख मिलेगी । वरना इसी तरह अदला-बदली का मौसम चलता रहेगा ।
29.1.19
दल-बदल
मृणाल चटर्जी
अनुवाद- इतिश्री सिंह राठौर
ठंड को जैसे हरी सब्जियों का मौसम माना जाता है , वसंत ऋतु को फूलों का मौसम और बारिश को सर्दी-बुखार का मौसम कह सकते हैं । उसी तरह चुनाव को दल-बदल का मौसम माना जा सकता है । चुनाव के कुछ महीने पहले कौन सा नेता किस पार्टी में शामिल होगा यह कहना मुश्किल हो जाता है । कल तक जिस नेताको गालियां देते थे, दुनिया का सबसे भ्रष्ट आदमी कहते थे अब उसको भगवान कहते हैं और उसीका ही भजन गाते हैं ।अब पूरे देश में यही मौसम है । अब ओडिशा की ही बात ले लीजिए ! विपक्ष के कुछ नेता सत्तापक्ष के हो गए हैं । फिर कुछ नेता उस पार्टी को छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल हो गए हैं। दुसरे दिन जब अखबार से लोगों को इस बात का पता लगा तो आधे कन्फ्यूज हो गए कि कौन किस दल का नेता है ! दोस्तों ! राजनीति में रोज कुछ न कुछ होता रहता है । वहां कोई किसीका परमानेंट दोस्त नहीं । जरूरत ही दुश्मन और दोस्त तय करता है । आज जो इस दल में है कल उस दल में होगा ।
पार्टी से याद आया कि कुछ पार्टिंयां है या नहीं यह जान पाना मुश्किल है । चुनाव से पहले कईं छोटी-मोटी पार्टियों का संगम बड़ी पार्टियों से हो जाता है । इस दल-बदली के बारे में मैंने शोध किया । इसके चार ही कारण हैं । एक- जो दल बदलने वाले नेता कहते हैं । दो- जो नेता के दल छोड़ने बाद वहां बचे नेता कहते हैं । तीन- जिस पार्टी में नेता शामिल होते हैं उसी पार्टी के सदस्य जो कहते हैं और चार-जिस कारण एक नेता दल छोड़कर दुसरी पार्टी में शामिल होता है वही होता है असली कारण । आपने अगर नोटिस किया होगा तो , पार्टी छोड़ने के बाद नेता अक्सर यही कहते हैं कि इस पार्टी का कोई आदर्श नहीं । इसमें लोकतंत्र ही नहीं । पार्टी के नेता स्वार्थी हैं । आम लोगों की बातों को वह नजरअंदाज कर देते हैं । मैं लोगों की सेवा के लिए जो करना चाहता हूं, वह कर नहीं पा रहा । मेरा दम घुट रहा है । इसीलिए मैंने इस पार्टी को छोड़ कर उस पार्टी को ज्वाइन किया है ।
पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर नेता यही कहते हैं कि पूर्व पार्टी खराब थी, नई पार्टी अच्छी है । उन्हें स्वीकार करनेवाले नेता कहते हैं- उस दल के दिग्गज नेता बुरे हैं । जिन्होंने पार्टी ज्वाइन की है वही साधु हैं । जो साधु नेता हमारी पार्टी में शामिल हुए हैं उनके आने के बाद पार्टी और मजबूत होगी ।
फिर नेता जिस पार्टी को छोड़कर जाते हैं उस पार्टी के नेता कहते हैं उनके जाने से हमारा बिलकुल भी नुकसान नहीं होगा । पार्टी पर उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा । वह बहुत ही स्वार्थी थे । पार्टी की हितों के बारे में नहीं सोचते थे । पार्टी का काम नहीं करते थे । केवल आत्म प्रचार में लगे रहते थे । उनके जाने से पार्टी और भी मजबूत हो गई है ।
अब दल-बदलने का असली कारण मैं आपको बताता हूं । असली कारण है, स्वार्थ और अभिमान । कुछ लोग अभिमान के कारण पार्टी छोड़ते हैें । पार्टी में जिस तरह का सम्मान मिलना चाहिेए उस तरह का सम्मान न मिलने पर कुछ लोग पार्टी छोड़ते हैं । लेकिन एेसे लोगों की संख्या कम है । असलिय़त तो यह है कि अगर पुरानी पार्टी में अपना स्वार्थ पूरा न हो अथवा जो पद मिलना चाहिए वह न मिले तो नेता पार्टी छोड़ देते हैं । पकड़ो । छोड़ो । पकड़ो । छोड़ो । यह हमारी राजनीतिक संस्कृति बन चुकी है ।
इसकेलिए केवल राजनेता जिम्मेदार नहीं क्योंकि नेता पेड़ पर नहीं उगते । लोग हीं किसी इंसान को नेता बनाते हैं । कहते का मतलब यह है कि मतदाता हीं इसमें कुछ कर सकते हैं । अगर हम दल-बदलने वाले नेता को वोट न देकर खारिज कर दें, तो नेताओं को सीख मिलेगी । वरना इसी तरह अदला-बदली का मौसम चलता रहेगा ।
29.1.19
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