सतरंगी बातें
सेल्फी
मृणाल चटर्जी
अनुवाद इतिश्री सिंह राठौर
खुद अपनी फोटो उठाने की प्रक्रिया को 'सेल्फी' कहते हैं । 2013 में ही यह शब्द अंग्रेजी शब्दकोष में शामिल हो गया था । खुद अपनी फोटो उठाने की क्रिया नयी नहीं है । रबर्ट करनेलियस नामी एक व्यक्ति ने 1839 में अपनी फोटो खींची थी । उसे पृथ्वी का पहला सेल्फी माना जाता है । खुद अपनी फोटो खींचना भले ही नया न हो, लेकिन उस फोटो को इंटरनेट के माध्यम से सोसल मीडिया के जरिए प्रसारित करने की टेक्नोलाजी नई है । इसकी शुरुआत 20 साल पहले ही हुई है । बहुत ही कम समय में यह इतना लोकप्रिय हो गया है कि आंकड़ों के अनुसार आजकल लोग एक दिन में लोग जितनी 'सेल्फी' लेते हैं फोटोग्राफी शुरू होने के पच्चास सालों के भीतर भी उतनी फोटो नहीं खींची गई । नील आर्मस्ट्रांग चांद पर गए थे । वहां उन्होंने पांच फोटो खींची थी ।
उधर नवघन की पत्नी रंगवति बाथरूम में घुसने पर भी पच्चीस 'सेल्फी' लेती है । उनमें से पंदरह फोटो वह फेसबुक पर पोस्ट करती है । नीचे लिखती है फीलिंग हैपी इन बाथरूम । अगर कुछ सामाजिक बाधाएं न होती तो वह बेडरूम में भी 'सेल्फी ' लेकर सोशल मीडिया में पोस्ट करती । नीचे लिखती । स्लिपिंग नाओ । फीलिंग हैपी । लोग किसी भी हालत में सेल्फी उठाते हैॆ । बाप मर गया । बेटा श्मशान में ही मृत पिता के साथ 'सेल्फी' उठाकर नीचे लिखता है डेड डैड । एट ट क्रिेमेटोरियम । फीलिंग सेड ।
कुछ लोग सेल्फी के साथ झूठी बातें भी लिखते हैॆ । दूसरों की गाड़ियों के साथ फोटो खींच कर कैप्शन में लिखते हैं विथ माई न्यू कार । फीलिंग हैपी । हमारे घर के पीछे जो पहाड़ है वहां 'सेल्फी' उठाकर कुछ लोग लिखते हैॆ ए द हिमालयस ।
सेल्फी लेने का क्रेज इतना बढ़ गया है कि पहले लोग बाहर घूमने जाते थे फिर फोटो उठाते थे । अब लोग फोटो उठाने के लिए बाहर घूमने जाते हैं । वहां दर्जनों फोटो उठाते हैं सोशल मीडिया में पोस्ट करते हैे । हालत एेसी हो गई है कि कहीं बाहर जाने से लोग साथ कुछ ले जाएं चाहे न ले जाएं सेल्फी स्टिक जरूर ले जाते हैं । जिन्हें सेल्फी स्टिक के बारे में नहीं पता उन्हें बता दूं यह डंडे जैसा यंन्त्र है । इसके एक तरफ मोबाइल फोन को बांध कर दूर से अपनी तस्वीर खींच सकेंगे । 'सेल्फी' लेते समय कम उम्र की लड़कियां तथा खुद को कम उम्र की समझने वाली औरतें भी अपने होंठों को बीड़ी पीने जैसा क्यों बनाती हैं मुझे समझ नहीं आता । किसीने मैंने पूछा तो उसने जवाब दिय़ा, 'यू ओल्ड फूल' इसे पाउट कहते हैं । इससे 'सेल्फी' की खूबसूरती बढ़ जाती है । बाकियों को यह सेल्फी अच्छा लगती है या बुरी यह मैं नहीं जानता लेकिन मुझे उसका मुहं बतख जैसा लगा ।
' सेल्फी' का क्रेज कितना बढ़ चुका है यह इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अब एेसे मोबाइल फोन मार्केट में आ गए हैं जिन्हें मार्केट में 'सेल्फी' एक्सपर्ट के नाम से विज्ञापन किया जा रहा है । 'सेल्फी' लेते समय पहाड़ से नीचे गिर कर, नदी में डूब कर, ट्रेन के नीचे आकर कई लोगों ने जान गवाई है । इस तरह की घटनाएं भारत में सबसे आधिक घटी है । इस श्रेणी में दूसरे नम्बर पर पाकिस्तान आता है । यानी हम अपनी फोटो खींचने में इतने डूब जाते हैं कि किस हालत में यह सेल्फी लेते हैं वह भी भूल जाते हैं ।
इतनी उत्सुकता से और रिस्क लेकर भले ही लोग सेल्फी लेते हों फिर भी सेल्फी आंकड़ों के आनुसार एक की सेल्फी दुसरे को अच्छी नहीं लगती । फिर भी सेल्फी मेनिया का क्या कारण हो सकता है ? मैंने शोधकर जो पता लगाया वह यह है कि एक: इसमें ज्यादा पैसे खर्च नहीं होते । दो: यह करना बहुत आसान है । तीन : सबसे जरुरी है खुद की छवि दुसरों को दिखाना ।
सेल्फी खुद से प्यार करने का एक्सट्रीम उदाहरण है । आत्मरति का चरम उदाहरण । पहले कहीं भी कहीं बाहर जाने लोग दुसरों को फोटो खींचने को कहते थे । अब खुद की तस्वीर खुद उठाते हैं । खुद उसे सोशल मीडिया में पोस्ट कर खुद देखते हैं । खुद ही दुसरों के नाम से उसे लाइक करते हैं । और किसीेके नाम से 'हाओ व्यूटीफुल!', आप कितनी सुंदर है भी लिख देते हैं ! एेसी 'मैं त्व' को लेकर जीने का नाम 'सेल्फी' है ।
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This column, originally written in Odia is translated by Itishree Singh Rathore and published in www.hindikunj.com and monthly CartoonWatch.
29.7.18