सतरंगी बातें
स्त्री...पुरुष
मृणाल चटर्जी
अनुवाद- इतिश्री सिंह राठौर
एक पुरुष अक्सर यही सोचता है कि स्त्री नौकरी नहीं करती , आफिस नहीं जाती, घर में रहती हैं, वह कुछ काम नहीं करती । उसका समय बस सोते-बैठते कटता है । बेचारा पुरुष दिनभर मेहनत कर जो पैसे कमाता है उसमें स्त्री एेश करती है ।
दूसरे मर्दों की तरह नवघन भी यहीं सोचता था । एकदिन उसने ईश्वर से यह प्रार्थना की कि प्रभु ! मुझे औरत बना दीजिए और मेरी पत्नी को पुरुष । ताकि उसके समझ में आए कि मुझे कितना काम करना पड़ता है । कितनी मेहनत करनी पड़ती है । सुबह उठ कर आफिस जाने के बाद घर लौटते-लौटते रात को आठ बज जाते हैं । और उसकी बीबी घर में एेश करती है ।
भगवान उसदिन अच्छे मुड में थे । तुरंत ही नवघन की पुकार सुन ली । अगले दिन सुबह नवघन रंगवति बन गया है और रंगवति नवघन । जिन्हें नहीं पता उन्हें बता दूं रंगवति नवघन की बीबी है ।
सुबह-सुबह नवघन की आंखें खुली । क्योंकि वह रंगवति बन गया था इसीलिए रंगवति जो-जो काम करती थी उसे करना पड़ा । सुबह उठकर उसने झाडू लगाया । रंगवति जो नवघन बन गई थी उसे चाय बना कर दिया । आखबार लाकर दिया । उसदिन कामवाली बाई नहीं आई थी । इसीलिए नवघन को बर्तन भी मांजने पड़े । रंगवति के लिए उसने नाश्ता बनाया । टिफिन बना कर पैक किया । रंगवति आफिस के लिए निकली। उसके बाद नवघन ने बच्चों को नींद से जगाया । बच्चे सुबह उठना नहीं चाहते । उन्हें जबरदस्ती उठाया । उन्हें नहलाया, नाश्ता खिलाया, स्कूल के लिए तैयार किया और नाश्ता खिला कर स्कूल बस में बैठा कर लौटा ।
उसके बाद खुद नहाकर उसने नाश्ता किया । उसके बाद फ्रीज खोलकर देखा तो सब्जी नहीं थी । बाजार गया सब्जी लाने। सब्जी ला कर लौटा तो याद आया टेलीफोन का बिल भरने की आज आंतिम तिथि है । अगर आज बिल न भरे तो फाइन लगेगा । नवघन फिर से टेलीफोन आफिस गया । वहां बहुत भीड़ थी । कतार में खड़ा होकर बिल भरने में दो घंटे लगे । थकाहारा घर लौटने के बाद खाना बनाना पड़ा । चावल कच्चा बना और दाल जल गया । सब्जी में तो नमक ही डालना भूल गया नवघन ।
इसीबीच बच्चों का स्कूल से लौटने का समय हो गया । बस से उतर कर चौक पर इंतिजार कर रहे बच्चों को घर लाने के बाद नवघन ने उनके लिए खाना परोसा । बच्चों ने कच्चा चावल, जली हुई दाल और बिना नमक की सब्जी देखकर नवघन पर चिल्लाया । बड़े बेटे ने तो सब्जी फेंक दी । कहा, एेसे गंदा खाना बनाने पर वह बिलकुल भी नहीं खाएगा ।
खाना खाने के बाद उसे याद आया कि कपड़ों की इस्त्री नहीं हुई । वह इस्त्री करने लगा । इस्त्री करते करते साड़े चार बज गए । बच्चे खेलने चले गए । वह रात के खाने के लिए सब्जी काटने लगा । कुछ समय बाद छोटी बेटी रोते रोते घर आई । वह गिर गई थी । उसे चोट लगी थी । उसके घांव में मरहम लगाया । डाक्टर को फोन पर सारी बातें बताई । उसने टिटनेस लगाने वाली बात भी पूछी । डाक्टर ने कहा टिटनेस लगाना अच्छा होगा । छोटी बेटी को लेकर वह फार्मासिस्ट के पास गई । टिटनेस इंजेक्सन लगाया । इसीबीच दूसरे बच्चे लौट आए थे । उन्हें नाश्ता देकर पढ़ाना शुरू किया । बड़े बेटे को गणित नहीं आ रहा था । उसे गणित समझाया ।
इसीबीच रंगवति आफिस से लौट चुकी थी । उसे नाश्ता दिया । बोला, बेटे को थोड़ा गणित पढ़ा दो । रंगवति ने कहा, आफिस में बहुत काम था , वह थक गया है । वह खुद ही पढ़ा दे । बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते रात के साड़े नौ बज गए । उसके बाद सभी के लिए खाना परोसा । खाने के बाद झूठे बर्तनों को किचन में रखा । विस्तर किया । रंगवति ने उसे योन-क्रिया के लिए बुलाया । उसकी इच्छा न होते हुए भी रंगवति का मन रखने के लिए उसने वह भी किया ।
अगले दिन सुबह नवघन की नींद खुलते ही उसने भगवान से कहा, हे भगवान मैं बहुत ही गलत सोचता था । दरअसल रंगवति को बहुत काम करना पड़ता है । मैं फिर कभी एेसा नहीं सोचूंगा । मुझे फिर से पुरुष बना दीजिए । भगवान ने कहा, बेटा ! अभी समझ आया कि स्त्री के घर में रहने पर भी उसे कितना काम करना पड़ता है । तुम यह बात समझ गए, मैं खुश हूं । मैं तुम्हें तुरंत फिर से पुरुष बना देता लेकिन उसके लिए तुम्हें नौ महीना इंतिजार करना पड़ेगा क्योंकि तुम गर्भवति हो ।
(मृणाल चटर्जी ओडिशा के जानेमाने लेखक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं । मृणाल ने अपने स्तम्भ 'जगते थिबा जेते दिन' ( संसार में रहने तक) से ओड़िया व्यंग्य लेखन क्षेत्र को एक मोड़ दिया ।इनकी आनेवाली किताबों में से 'विडोसीट' (स्तंभ) और उपन्यास 'शक्ति' (अंग्रेजी अनुवाद काफी चर्चा में है । )
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